सांसद, विधायकों पर चलेगा केस, कानून में नहीं मिलेगी छूट-Supreme Court

Dhanraj chauhan
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सांसद और विधायकों पर कारवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही एक पुराने फैसले को बदलते हुए एक नया फैसला दिया है अब तक सांसद और विधायकों को यह विशेष अधिकार मिला था कि सदन के अंदर दिए गए उनके बयानों या कार्यों पर एक्शन केवल संसद या विधानसभा की विशेष अधिकार समिति ही लेगी लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यों वाली संवैधानिक पीठ ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाया है और साफ कर दिया है कि विशेषाधिकार का मतलब यह नहीं है कि जनप्रतिनिधि सदन में मानी करेंगे तो क्या है संवैधानिक पीठ का फैसला देखिए यह रिपोर्ट सांसद और विधायकों के आचरण पर कार्रवाई के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज एक बड़ा फैसला सुनाया है सीजीआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यों की बेंच ने 26 साल पुराने अपने ही फैसले को पलटते हुए कहा कि हम 1998 में दिए गए जस्टिस पीवी नरसिंहा की पांच सदस्य वाली बेंच के उस फैसले से सहमत नहीं है जिसमें सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने के लिए मुकदमे से छूट दी गई थी आपको बता दें कि लोकसभा के अंदर नोटों की गड्डियां लहराने से लेकर जनप्रतिनिधियों पर वोट बेचने और सवाल पूछने के लिए पैसे लेने तक के गंभीर आरोप लगे हैं लेकिन जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो 1998 में दिए गए अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि सदन के अंदर की गतिविधियों को लेकर सदस्यों के विशेषाधिकार हैं कानून से उन्हें छूट मिली हुई है 1998 में पांच जजों की संविधान पीठ ने तीन के मुकाबले दो के बहुमत से फैसला दिया था कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता लेकिन यह मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है जिसमें अदालत ने पुराने फैसले को पलट दिया है सीजेई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कोई घूस लेता है तो केस बन जाता है यह मायने नहीं रखता कि उसने बाद में वोट दिया या फिर स्पीच दी आरोप तब भी बन जाता जिस वक्त कोई सांसद घूस ले लेता सीजीआई ने कहा अगर कोई सांसद भ्रष्टाचार और घूसखोरी करता है तो यह चीजें भारत के संसदीय लोकतंत्र को समाप्त कर देंगी आर्टिकल 105 194 में मिले विशेषा अधिकार का मकसद सांसद के लिए सदन में भय रहित वातावरण बनाना है अगर कोई विधायक राज्यसभा इलेक्शन में वोट देने के लिए घूस लेता है तो उसे भी प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट का सामना करना ही पड़ेगा इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने संसद या विधान सभा में दिए गए अपमानजनक बयानों को अवैध मानने से इंकार कर दिया है कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जनप्रतिनिधियों पर कारवाई नहीं की जा सकती है

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